इस विद्यालय का मुख्य ध्येय ऐसी स्वस्थ शिक्षा प्रदान करना है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने मन - शरीर तथा बुद्धि का सम्पूर्ण विकास कर सकें इसके अतिरिक्त इसका ध्येय निर्धन छात्रो में विश्व-बन्घुत्व की भावना को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना तथा देश की एकता अखण्डता के लिए सदैव तत्पर रहने के लिए जागरूकता बनाना हैं |
तिलेश्वरी देवी बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बलिया जनपद मुख्यालय से लगभग 66 कि0 मी0 दूर दोहरीघाट पम्प नहर पर (किडिहरापुर से मालीपुर के मध्य) स्थित हैं । किडिहरापुर रेलवे स्टेशन के 7 कि० मी० दूर स्थित तिलेश्वरी देवी बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गौरा, पतोई-बलिया छात्र तथा छात्राओं के लिए जनपद का प्रगतिशील विद्यालय हैं । इस विद्यालय की स्थपना तिथि- 1984 हैं| तब से लेकर आज तक यह विद्यालय निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर हैं ।
तिलेश्वरी देवी बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय परिवार आपको शैक्षिक वातावरण एवं व्यवस्था का आश्वासन देता है | परिवार के प्रत्येक सदस्य परस्पर स्नेह, सौहार्द और आदर का भाव रखते है | आप एक ऐसी संस्था से जुड़े रहे है, जिसके, समरसता एवं एकरूपता को स्थापित करने की अपनी परम्परा को सुव्यवस्थित रखने हुए इसे आप उत्तरोतर विकास के पथ पर अग्रसर करेगें | हमारा सतत एवं भागीरथ प्रयास है कि हम इस संस्था के अपने सुव्यवस्थित मूल्यों के अनुकूल आप को अपने लक्ष्य तक पहुंचा सके एवं संस्कारयुक्त व्यक्ति बना सके | आप का मनोबल एवं नैतिक स्तर पर्वत से भी ऊँचा, समुद्र से भी गहरा और आकाश से भी विशाल होगा चाहिए | जिससे कोई भी शक्ति आपकी प्रगति को अवरुद्ध न कर सके | मेरी शुभकामनाएँ आप के साथ है |
इस प्रगतिशील युग में नित नवीन तकनीक के उपयोग के बिना प्रगति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा भी इसी पथ का अनुसरण करते हुए प्रथम बार अपने पारम्परिक परिवेश से बाहर निकल कर नवीन तकनीकी को अपनाते हुए शैक्षिक सत्र 2013-2014 से अग्रिम पंजीकरण की समस्त कार्यवाहियों को इस नवसृजित वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन कराया गया, जो कि शतप्रतिशत सफल रहा था। इससे परिषदीय कार्यों की गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता में आशातीत वृद्धि हुई। इस सफलता के लिये हम प्रदेश के समस्त शिक्षाधिकारियों एवं समस्त संस्थाओं के प्रधानाचार्यो आदि का विशेष आभार व्यक्त करते है।.
भारतीय जनमानस में शिक्षालय की तुलना देवालय से की गयी है क्योंकि दोनों में साधना प्रमुख है देवालय में जहां तप की साधना करके मनुष्य अपने नश्वर कामनाओं से मुक्त परमात्मा का सामिप्य प्राप्त करता है। उसी तरह देवालय में छात्र तप करके अपने अन्तर दोषों को गुरु से ज्ञान प्राप्त कर परिमार्जित करता है शायद इसीलिए गुरु को ‘आचार्य देवो भव' की उपमा प्रदान की गयी है। छात्र जब विद्यालय में प्रवेश लेता है बहुत सारी अज्ञानता, उत्सुकता उसके अन्तर्मन में निवास करती है। ऐसी स्थिति में एक आदर्श गुरू उसके अन्तर्मन के विकारों को अपने कठिन प्रयासों से दूर करके सद्गुणों का आरोपण से करते हुए छात्र के सद्ज्ञान की उत्सुकता को अपने ज्ञान से है तथा छात्र को पूर्ण मनुष्य के रूप में परिमार्जित करता है। कभी-कभी छात्र-गुरू एवं ज्ञान के बीच कुलगत संस्कार ..